ये है सरदार पटेल की कांग्रेस और सोनिया गांधी की कांग्रेस का अंतर

सीएए के विरोध के पीछे बस इतना सा फर्क है कि वो सरदार पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद और आचार्य कृपलानी की कांग्रेस थी, ये सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की कांग्रेस है
पाकिस्तान और बंग्लादेश में सताए जा रहे हिंदुओं को नागरिकता देने से देश के अन्य किसी भी नागरिक पर क्या संकट आ रहा है? नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) तो शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए बना है. किसी की नागरिकता छीनने का तो इसमें कोई जिक्र ही नहीं, फिर ये बवाल क्यों काटा जा रहा है? ऐसे सवालों के जवाब नहीं दिए जाते. रणनीति बस इतनी है कि कानों में उंगली देकर अपना झूठ दुहराए जाओ कि “सीएए भेदभाव का क़ानून है.. काला क़ानून है.. गांधी का देश खतरे में है...”
लेकिन लुटे-पिटे, सताए हिंदू , सिखों आदि को राहत देने में महात्मा गांधी को क्या तकलीफ हो सकती थी ? सत्य तो यह है कि 7 जुलाई 1947 को प्रार्थना सभा में गांधी जी ने कहा था कि “ पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख हर नज़रिए से भारत आ सकते हैं. अगर वो वहाँ नहीं रहना चाहते हैं, तब उन्हें नौकरी देना उनके जीवन को सामान्य बनाना भारत सरकार का पहला कर्तव्य है..”
खैर, गांधी को तो कांग्रेस ने कब का किनारे लगा दिया था, लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू पर तो कांग्रेस आज भी कुर्बान है. स्वतंत्रता दिवस के एक मौके पर अपने भाषण में पंडित नेहरू ने जिक्र किया था पाकिस्तान में फंसे उन लाखों हिंदुओं, सिखों व अन्य समुदायों का, जिन्होंने पाकिस्तान नहीं मांगा था लेकिन जो पाकिस्तान के खूनी चंगुल में बेबस छोड़ दिए गए थे. नेहरू ने कहा था “हमारे वो भाई जो राजनीतिक सीमाओं के कारण हमसे अलग हो गए हैं, जो हमें देख रहे हैं लेकिन स्वतंत्रता के इस उत्सव में भाग नहीं ले सकते, हम उनके लिए चिंतित हैं. जो भी हो, वो हमारे हैं, और हमेशा हमारे रहेंगे. हम उनके सुख-दुःख में बराबर के साझीदार रहेंगे, और जब कभी भी वो भारत आना चाहें, हम उन्हें स्वीकार करेंगे..”
क्या सोनिया गांधी सुन रही हैं ? क्या उनके सुपुत्र सुन रहे हैं ? उनकी पार्टटाइम राजनीतिज्ञ बेटी इस ओर ध्यान देंगी क्या? नेहरू ने किसे स्वीकार करने को कहा था? कौन थे वो लोग जो सीमा के उस पार से भारत के स्वतंत्रता समारोह को देख रहे थे, भाग लेना चाहते थे, लेकिन भाग नहीं ले पा रहे थे? कौन थे जो खुद को अचानक पाकिस्तान में पाकर खुश नहीं थे?
फिर, आज़ादी के तीन महीने बाद, 25 नवंबर 1947 को कांग्रेस की वर्किंग कमेटी ने प्रस्ताव पारित किया “कांग्रेस उन सभी गैर मुस्लिमों को संरक्षण देने को बाध्य है, जो अपनी जान और सम्मान बचाने के लिए सीमा पार करके भारत आए हैं, या भविष्य में आने वाले हैं...” लेकिन उस कांग्रेस और इस कांग्रेस में फर्क है. वो कांग्रेस सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कांग्रेस थी, ये सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की कांग्रेस है.
यहीं प्रश्न मीडिया के लिए भी उठता है, जो रिपोर्टिंग में लगा है कि “राहुल गांधी ने आज सीएए को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला... सोनिया गांधी ने सीएए पर मोदी-शाह पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया... प्रियंका वाड्रा ने सीएए पर ....” मीडिया के ये घटक कांग्रेस से, गांधी परिवार से ये सवाल क्यों नहीं पूछते कि वो 25 नवंबर 1947 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी द्वारा किये गए वादे से क्यों मुकर रहे हैं? नेहरू के उस भाषण पर उनका क्या जवाब है? अपने को महात्मा गांधी का ‘शिष्य’ बताने वाले राहुल गांधी महात्मा गांधी के इस वचन का निरादर क्यों कर रहे हैं? और सबसे बड़ा सवाल, पाकिस्तान और बंग्लादेश में नोची जा रहीं वो बेगुनाह मासूम बेटियां, जो सिर्फ हिंदू या सिख होने के कारण उस नरक को भोग रही हैं, उन पर आपको दया क्यों नहीं आती? उन माँ-बाप के लिए आपका दिल क्यों नहीं दुखता जिनकी मासूम बेटी स्कूल जाती है और फिर लौटकर नहीं आती? गुड़ियों से खेलने की उम्र में जिसका निकाह किसी अधेड़ से कर दिया जाता है? इनको राहत देने में “सेकुलरिज्म” पर कौनसा ख़तरा आ जाता है?
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान से आ रहे शरणार्थियों के बारे में कहा था “हम उन लोगों का पुनर्वास करने के लिए व्यग्र हैं, जो विस्थापित किए गए हैं, और जिन्होंने अत्याधिक कठिनाइयां और असुविधा झेली है. वो जब भी भारत आने का फैसला करते हैं, उनका स्वागत होगा.”
इन तथ्यों पर मीडिया मौन है और कांग्रेस बहरी होने का नाटक कर रही है. राहुल गांधी अपनी माता समेत एक बार फिर “राफेल” अंदाज़ में हैं, जब रात-दिन एक झूठ को उछालकर उन्होंने ऊंचे सपने पाले थे, और अंततः जनता ने मोदी को अपार वोट देकर राहुल के राफेल राग को मुंह तोड़ उत्तर दिया था. पर राहुल शायद ऐसी ही राजनीति करना जानते हैं. लेकिन प्रश्न और भी हैं. 
पूर्व प्रधानमंत्री होने के नाते मनमोहन सिंह को तो अपनी बात पर टिकना चाहिए. 18 दिसंबर 2003 को उन्होंने कहा था कि “बंग्लादेश जैसे देशों में अल्पसंख्यक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. और यदि परिस्थितियां उन्हें मजबूर करती हैं तो वो भारत आते हैं. ऐसी स्थिति में हमारी ये नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम उन्हें नागरिकता दें.” आज वही मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के साथ खड़े होकर सीएए का विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी नेहरू और गांधी द्वारा हिंदुओं और सिखों से किए गए वादे को तोड़ रही है. खुलेआम तोड़ रही है. पूरी निर्लज्जता से तोड़ रही है. सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के पतन की ये पराकाष्ठा है।