भारत-चीन के बीच लद्दाख में चल रही रस्साकसी पर विशेष


अब तक मीडिया के माध्यम से ये तो आपको ज्ञात हो चुका होगा कि चीन और भारत के बीच LAC पर तनातनी चल रही है. इस तनातनी के पीछे सिर्फ बदलता ग्लोबल परिदृश्य ही नहीं है...बल्कि भारत का अपने आप को सबल बनाना भी है.

1997 में सरकार ने 4,643 किलोमीटर की कुल लंबाई के साथ 73 रणनीतिक सड़कों की पहचान की थी, जिन्हें भारत चीन बॉर्डर रोड (ICBR) लेबल किया गया था. LAC के साथ-साथ सैनिकों की आवाजाही में सुधार करने और चीन के बुनियादी ढांचे के निर्माण से मेल खाने के लिए ये खाका तैयार किया गया था.

सन 1999 में BRO को इन 73 में से 61  सड़कें बनाने का कार्य मिला और इन सड़कों को 2012 तक बनाना तय हुआ. ये कार्य सीधे PMO की निगरानी में किया जा रहा थापर बदकिस्मती से 2012 तक इन 61 में से सिर्फ 15 सड़कों का ही कार्य पूरा हो पाया.

चीन इस बीच अपनी स्थिति मजबूत करता जा रहा था..और हमारी सरकारें बहुत सुस्त रफ़्तार से इस कार्य को चलने दे रहीं थी. ऐसे में चीन भी खुश था और हमारे नेताओं पर भी काम करने का और देश को सुदृढ़ बनाने का प्रेशर कम ही था.

यही वो समय था जब देश में Corruption चरम पर था और देश के स्ट्रेटजिक कार्य बैकसीट ले चुके थे.

बहरहाल 2015 में सड़क निर्माण में पहले की अपेक्षा तेजी आनी शुरू हुई..और 2016 से 2018 के बीच सड़क निर्माण दुगनी तेजी से आगे बढ़ने लगा.

2017 में डोकलाम में चीन के साथ हुए आमने सामने ने इस कार्य में और कैटेलिस्ट का काम किया..और जहां चीन ने उम्मीद की थी कि इस तरह के कन्फ्रन्टेशन से भारत डर जाएगा..उसके उलट भारत ने इंफ्रास्ट्रक्चर की अपनी तैयारी और तेज कर दी.

डोकलाम की घटना के बाद मोदी सरकार ने एक बहुत बड़ा फैसला ये किया कि LAC के १०० किलोमीटर अंदर डिफेंस infra निर्माण के लिए लगने वाले फॉरेस्ट और पर्यावरण की NOC वाला क्लॉज केंसिल कर दिया.

इन 61 सड़कों की कुल लम्बाई 3323.57 किमी में से 2304.65 किमी पर काम पूरा हो चुका है. बाकी की सड़कों पर काम तेजी से जारी है.  

इस समय श्योक और गलवान नदी पर निर्माण कार्य किया जा रहा है और चीन ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की तरफ निर्माण करने पर आपत्ति जताई है.  चीन का कहना है कि भारत निर्माण के लिए चीन की सीमा का इस्तेमाल कर रहा है जबकि भारत का कहना है कि वह अपनी सीमा में रहकर ही निर्माण कार्य कर रहा है

भारत द्वारा स्ट्रेटजिक सड़कों के निर्माण की डेडलाइन 2022 रखी गयी है...और जिस रफ़्तार से कार्य चल रहा है चीन भी जानता है कि डेडलाइन के अंदर ही ये कार्य पूरा हो जाएगा.

बस यहीं चीन को लग रहा है कि इकोनॉमिक फ्रंट पे जैसे ही विश्व उसे घेरे और भारत एक बड़ी ताकत बन के उभरे..भारत को कैसे भी दबा के वर्ल्ड में अपनी ताकत दिखाई जाए.

चीन की कैलकुलेशन में शायद 1962 से 2014 वाला भारत है. जल्द ही चीन की ये गलतफहमी भी दूर हो जायेगी.