
मिलते रोज़ दोनों अपनी ज़मी से मगर एक होते नहीं है,
अंत दोनों का ही नही मगर एक जगह पे दोनों ही खत्म होते से हैं.
ये समुद्र और मैं एक से हैं,
गरजते बाहर से खूब मगर अंदर कुछ छुपाये शांत से हैं,
विस्तारित दोनों अनंत तक मगर खुद में ही दोनों कुछ सिमटे से हैं.
गरजते बाहर से खूब मगर अंदर कुछ छुपाये शांत से हैं,
विस्तारित दोनों अनंत तक मगर खुद में ही दोनों कुछ सिमटे से हैं.
मैं और ये पहाड़ दोनों ही एक से हैं,
चांद को छूने की कोशिश में अड़े अपनी जगह दोनों ही कुछ पागल से हैं,
मैं और ये हवा एक से हैं,
चलते रहते दोनों ही मगर फिर भी कुछ स्थिर से हैं,
चलते रहते दोनों ही मगर फिर भी कुछ स्थिर से हैं,
मैं और ये बिन बरसे बादल एक से हैं,
छिपाये कुछ आंसू आंखों में दोनों ख़ामोश बैठे से हैं,
छिपाये कुछ आंसू आंखों में दोनों ख़ामोश बैठे से हैं,
मैं और ये दुनिया एक से हैं
इसके बिना मैं नही मेरे बिना ये नही,
फिर भी मगर दोनों अलग अलग से हैं!!!
इसके बिना मैं नही मेरे बिना ये नही,
फिर भी मगर दोनों अलग अलग से हैं!!!