फ्लिपकार्ट सेल की आड़ में चाइनीज़ हैकर्स ने लगाया चूना

फ्लिपकार्ट की बिग बिलियन डेज़ सेल के दौरान चीन के दो Hacking groups ने लाखों भारतीयों को अपना निशाना बनाया। साइबरपीस फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन के दो हैकर्स के ग्रुप्स (ग्वांगडोंग और हेनान प्रांत के फांग जियो किंग नामक एक संगठन) ने लोगों को स्पिन लकी व्हील नाम से लकी ड्रा का लालच देकर शिकार बनाया

हैकर्स ने फ्लिपकार्ट की तरह अमेज़न के नाम से अमेज़न बिग बिलीयन डेज़ सेल का एक स्पिन लकी व्हील लकी ड्रॉ बनाया, जबकि अमेज़न की सेल का नाम ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल था।

इस गेम की आड़ में हैकर्स ने लोगों को 128 जीबी स्टोरेज वाला OPPO F17 Pro देने का वादा किया। अक्टूबर और नवंबर के दौरान चीनी हैकर्स ने शॉपिंग घोटाले के जरिए भारतीयों के लाखों रुपये उड़ा लिए।

हैकर्स एक फर्जी लिंक बनाकर भारतीय यूज़र्स को भेजते थे और ऑनलाइन प्रतियोगिता में भाग लेने और पुरस्कार जीतने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करने को कहते थे।

हैकर्स ने लोगों को यह संदिग्ध मैसेज WhatsApp पर भेजा और दोस्तो और परिवार वालों के साथ इसे शेयर करने को भी कहा। मैसेज के साथ दिए जा रहे सभी लिंक चीन के थे।

"यह हैकर्स द्वारा शेयर किए जा रहे सभी डोमेन अलीबाबा क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर्ड थे। स्पिन लकी व्हील हैकिंग का एक पुराना तरीका है जिसके जरिए यूज़र्स को आज भी आसानी से शिकार बनाया जा रहा है।"

फेस्टिव सेल के दौरान भारत में ऑनलाइन शॉपिंग को लेकर काफी क्रेज रहता है जिसका फायदा ये हैकर्स उठाते हैं।

अमर शहीद सरदार उधम सिंह जी

 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के जिम्मेदार अफसर को गोली से भूनने वाले अमर शहीद सरदार उधम सिंह जी को सादर नमन

२६ दिसम्बर 2020 … अमर शहीद ऊधम सिंह जी की १२१ वीं जयंती  |

लोगों में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि माइकल ओडवायर को मारा था जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था।  ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। ऊधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे। 

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया। 

इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है। 

ऊधम सिंह अनाथ थे। सन 1901 में ऊधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।  ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले। अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। 

डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे। 

माइकल ओडवायर

इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दे।

ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर

इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए। जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएं से ही मिले। 

आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डाक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी। राजनीतिक कारणों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। 

इस घटना से वीर ऊधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओडवायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। ऊधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा उचित समय का इंतजार करने लगे। 

भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला, जब माइकल ओडवायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया। ऊधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने ओडवायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं।  ओडवायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया।

अदालत में ऊधम सिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियां बचीं थीं, तो उन्होंने उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। इस पर ऊधम सिंह ने जवाब दिया कि “हां ऐसा कर मैं भाग सकता था, लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।”

31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। ऊधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए।

ओडवायर को जहां ऊधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर बुरी मौत मारा गया।  

भारत माँ के इस सच्चे सपूत को शत शत नमन |
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!

Suffer In Silence

Why do some people suffer in silence? 

Because crying never fixed anything and no one wants to see you cry.

People suffer in silence, not because they enjoy suffering, but because that's all that life has put in their plates. I have known a lot of persons, and seen a lot of personal stories. 
My conclusion is, people are suffering. And they do so in silence because no one cares. 

If someone tells that he cares, trust you me, it's just for show. 

Many people have been to counsellors and regretted later because it ended up disastrously. 
Sharing your problem is like digging your own grave. When you share your problem: 
1. You'll be the talk of the town. 
2. The person listening doesn't care. 
3. The person listening is enjoying your suffering. 
4. The person listening is not in a position to help. 
5. You are becoming a pain in the neck, because other people have problems too. 
6. You are wasting your time, and other people's time as well. 

According to what we were taught, a problem shared is half solved. 
From experience, many people who suffer in silence have realised that a problem solved is doubled. Which is why you either keep it in and hide it in a corner of your heart or pour it to your dearest diary. 

You never know what intentions another person has.

Many of us can resonate with the famous saying by Lou Holtz,

“Never tell your problems to anyone. 20% don’t care and the other 80% are glad you have them.”

It is our natural tendency to carve out connections during our tough times. Frustrated by a particular situation, we all seek a shoulder to cry on.

But it is important to ask yourself if you are choosing the right person to share your problems with? The worst-case when you decide to share your problems with people is, they get to know the negative aspects of your life and they can share it with others.

What if the friend you are seeking relationship advice from, telling her about your issues with your man is wishing secretly for you to have a breakup? What if this colleague you are complaining to about your manager secretly reports you to the same person?

The least you would want in a troublesome situation is, that the whole world gets to know about your problem. Sharing your information with the wrong person can turn the situation more frustrating for you which is something you definitely don’t want.

This is why it is necessary for you to think if the person you are pouring your heart out to is worth it. If you don’t feel it, it is better to keep your matters private and try to solve them on your own.

After all, if you keep a lively cheer and take good care of yourself, no one will realise you are suffering, thus no one will subject you to public opinions.

And so we suffer in silence.


Don’t be silent, if you have nothing to talk sweet, let’s fight.


“We are all a little weird and life's a little weird, and when we find someone whose weirdness is compatible with ours, we join up with them and fall in mutual weirdness and call it love.”

Love not only make you a better person, but it also changes the whole of you…
It teaches you to worship someone.
It makes you genuinely care about someone.
It let you experience, let you explore the most beautiful intuition of love.
It teaches you to admit your mistakes.
It makes you love someone’s flaws.
It makes you be wise to two hearts,
You lose your ego.
You become so childlike.
It makes you love someone compassionately, completely and till and beyond infinity…

When you start a relationship you will feel butterflies, tingles, and many more amazing things. However, after a while, this mellows out and you won't feel any of this anymore.

As for love, this grows as you get closer. Everyone has their own definition of love as it’s not something that can easily be explained.

For me, it’s the following-

“Love is not the desire to be together, it’s the unwillingness to be apart.”


At some point you won’t notice the love in the relationship anymore, however, the moment when you need to do something separated from your partner, you’ll get lonely, you’ll wish you were together again. It’s similar to being homesick. When you’re at home, you won't miss it, but when you’re away, you wish you were back.

Remember how it was at the beginning?

You couldn’t wait to see your partner, you could talk for hours, you’d hang off all of their words — and they off yours. 

But lately the conversation has dried up. So has the sense of adventure. You wouldn’t call it bad — just predictable, a little stale. How was your day…?

What’s for dinner…?   Who’s on dishes?

What’s up with the kids?

Who’s doing the pick-ups tomorrow?
The relationship holds good when both could relate to each other.

We stay in love because of 'Efforts', they equally do from both sides.
Reserve at least 25-30 minutes of uninterrupted time per day to really listen and communicate about your days. Don't be afraid of bringing up tough subjects and asking directly for what you need in these scenarios, either.


नायक

"एक ऐसा नायक जिसके लिए मात्र राष्ट्रहित एवं जनकल्याण ही सदैव सर्वोपरि हो" 


अगर चाहते हो कि तिरंगा, ऊँचा ही लहराए।

कोई काली आशंका भी, उसको छू ना पाए॥

पहचानो उसको जिसका, जीवन अर्पित भारत को।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥

जिसने जीवन दिया देश को, गलियों में भटका हो।

सम्बन्धों को छोड़ चला हो, ना धन में अटका हो॥

देश प्रथम हो जिसके क्रम में, परिजन जनता ही हो।

मातृभूमि की सेवा करने, इच्छा-क्षमता भी हो॥

आने वाला कल जिसको, सच्चा सपूत कह पाए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥1॥

धरती माँ को नमन करे जो, संस्कृति पर मरता हो।

देशद्रोहियों-जयचन्दों के, मन में भय भरता हो॥

स्वावलम्बी बन जाए हर जन, हो जिसका ये सपना।

भेदभाव को परे करे जो, कर ले सब को अपना॥

विश्व के हर कोने में जो, ऊँचा परचम लहराए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥2॥

नहीं सान्त्वना दे न सहारा, प्रेरित शक्ति कर दे।

देशप्रेम और पौरुष का वो, मन्त्र हृदय में भर दे॥

सेवक बन जाए किसान का, कवच बने सैनिक का।

नायक जो कर दे भारत को, जल, भूमि और दिक् का॥

नारी को निर्भीक करे, बच्चा-बच्चा हरषाए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥3॥

सोचे आगे का जो, याद रखे उजला इतिहास।

भ्रष्ट का इतना साहस ना हो, फटके उसके पास॥

हो चुनाव उसका जो, जनता में ना करे चुनाव।

सुजला-सुफला हो धरती, वो हर ले सभी अभाव॥

जिसको गले लगाने को, जग सारा हाथ बढ़ाए।

भ्रम-संशय-शंका छोड़ो, तय कर लो कि वो आए॥4॥

कोरोना वैक्सीन के लिए क्यों देख रहा है विश्व सपेरों के देश भारत की ओर

प्रायः हम ये सुनते हैं कि भारत को अंग्रेज़ सपेरों का देश समझते आये हैं, ये हमें शर्मिंदा महसूस करवाने के लिए अक्सर कहा जाता है, क्या सच मे ऐसा है? 

आज का ब्लॉग पढ़कर आप सोचने पर विवश होंगे कि इन धूर्त वामपंथी इतिहासकारों ने जितना समय, पैसा और ज्ञान मुग़लों की चाटुकारिता में लगाया उतना सही इतिहास लिखने में लगाया होता तो हम इन 70 वर्षों में कहां पहुंच सकते थे।

टीके (vaccines) की खोज

आज हमारा देश गरीब है लेकिन अंग्रेजों के शासन से पहले यही भारत देश इतना अमीर था कि इसे सोने की चिड़ियां के नाम से जाना जाता था.

हमारा भारत देश सिर्फ धन संपत्ति के मामले में ही अमीर नहीं था, बल्कि शिक्षा स्तर भी आपकी कल्पना से कहीं ऊँचा था।

चेचक का टीका:

 जिस समय चेचक यूरोप जैसे दूसरे देशों के लिए महामारी था, लाखों की संख्या में यूरोप के लोग चेचक से ग्रसित होकर मर रहे थे, उस समय यह चेचक भारत के लिए साधारण सी बात थी, क्योंकि हमारे पास इसका इलाज था।

एक बार 1710 में काफी चर्चित व्यक्ति, डॉक्टर ऑलिवर जब पहली बार भारत आए और वो लगभग पूरे बंगाल में घूमे, बंगाल में ऑलिवर ने देखा की यहां किस तरह बड़ी ही आसानी से सिर्फ एक इंजेक्शन के द्वारा टीका लगाकर चेचक को ठीक कर दिया जाता है और उसको लगाने के बाद दोबारा से पूरी जिंदगी उस व्यक्ति को चेचक नहीं होता।

ये सब देखने के बाद जब वह लंदन गए, वहां उन्होंने डॉक्टरों की एक सभा बुलाई और वहां के डॉक्टरों को भारत में चेचक के टीके की बात बताई।

अब चूंकि उस समय चेचक यूरोप वासियों के लिए महामारी था, सो उन्हें उनकी बात पर यकीन नहीं हो रहा था, तो फिर ओलिवर डॉक्टरों की पूरी टीम को वो भारत लाए और वो भी अपने खर्चे पर।

भारत में आकर उन्होंने यहाँ के वैध से चेचक के टीके के बारे में पूछा कि इसमें ऐसा क्या है? जिससे चेचक आसानी से ठीक हो जाता है? इस पर यहां के वैधों ने बताया कि “जो लोग चेचक के रोगी होते हैं हम उनके शरीर का पस निकाल लेते हैं और सुई की एक नोक के बराबर किसी के शरीर में प्रवेश करा देते हैं, जिससे उस व्यक्ति का शरीर इस रोग की प्रतिरोधक क्षमता धारण कर लेता है…”

डॉक्टर ऑलिवर ने अपनी डायरी में लिखा है कि “जब मैंने भारत के उन वैध से पूछा कि आपको यह सब किसने सिखाया तो उन्होंने कहा कि मेरे गुरु ने, और उनको उनके गुरु ने, मतलब कम से कम डेढ़ हज़ार (1500) वर्षों से भारत में यह टीका लगाया जा रहा है…”

डॉक्टर ऑलिवर ने अपनी डायरी के अंत में भारतीय वैधों का आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि “भारतीय वैधों ने बिना किसी शुल्क के हम अंग्रेजों को यह विद्या सिखाई है” और आज जिस डॉक्टर ऑलिवर को चेचक के टीके का जनक माना जाता है, वह डॉक्टर ऑलिवर भारत के वैज्ञानिकों को इस टीके का जनक मानते हैं.

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