विष्णुदत्त जैसा दबंग और दिलेर अधिकारी किस डर से टूटा होगा? वो डर इतना भयावह है कि राजगढ़ थाने में तैनात पुलिसकर्मियों ने सामूहिक तबादला माँग लिया।
“उन्होंने क़ानूनी रूप से आमजनों को न्याय दिलाने, सभी वर्गों के बीच सौहार्द कायम करने, और अपराधियों, सट्टेबाजों और नशाखोरों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई को हमेशा से अपनी प्रथम प्राथमिकता माना। उन्होंने लोगों के मन में क़ानून के प्रति विश्वास उत्पन्न किया। उन्होंने विकास कार्यों में जन भागीदारी सुनिश्चित की। बीकानेर के जिन भी क्षेत्रों में वो पदस्थापित रहे, वहाँ उन्होंने अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुँचाने के लिए अपनी जान लगा दी।”
मैं बुजदिल नहीं था…
विश्नोई शनिवार (23 मई 2020) को अपने सरकारी क्वार्टर से फंदे से लटके मिले थे। पंचतत्व में विलीन हो चुके विश्नोई ने दो सुसाइड नोट भी छोड़े थे। एक में उन्होंने जिले की एसपी तेजस्विनी गौतम को लिखा है,
“आदरणीय मैडम। माफ करना। प्लीज, मेरे चारों तरफ इतना प्रेशर बना दिया गया कि मैं तनाव नहीं झेल पाया। मैंने अंतिम साँस तक मेरा सर्वोत्तम देने का राजस्थान पुलिस को प्रयास किया। निवेदन है कि किसी को परेशान नहीं किया जाए। मैं बुजदिल नहीं था। बस तनाव नहीं झेल पाया। मेरा गुनहगार मैं स्वयं हूँ।”
किस डर से टूटा होगा?
ऐसा दबंग और दिलेर अधिकारी किस डर से टूटा होगा? वो डर इतना भयावह है कि विश्नोई की आत्महत्या के बाद राजगढ़ थाने में तैनात पुलिसकर्मियों ने सामूहिक तबादला माँग लिया। इस डर की परतें तो निष्पक्ष जाँच से ही खुलेंगी। फिलहाल राजनीतिक दबाव में प्रदेश सरकार न्यायिक जाँच के लिए तैयार हो गई है।
इस मामले में सवालों के घेरे में सादुलपुर की कॉन्ग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया हैं। बीकानेर के आईजी को सामूहिक तबादले के लिए जो पत्र लिखा गया है कि उसमें भी पूनिया और उनके समर्थकों पर स्पष्ट शब्दों में आरोप लगाया है कि वे झूठी शिकायतें उच्चाधिकारियों से करते थे। थाने में तैनात कुछ लोगों को इन्होंने दबाव डालकर लाइन हाजिर भी करवा दिया था।
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट बताती है कि विश्नोई की सुसाइड का राज थाने की राेजनामचा रपट में दर्ज है। इसके अनुसार “करीब डेढ़ माह पहले एक रपट में उन्होंने लिखा कि शराब का अवैध काराेबार करने वाले बदमाशाें काे पकड़ा ताे छुड़वाने के लिए विधायक ने फाेन पर सिफारिश की। सुसाइड से एक दिन पहले हत्या मामले में हुई बातचीत भी रपट में है।”

दैनिक भास्कर ने पूनिया से इस मामले में उनका नाम आने को लेकर सवाल किए हैं। जवाब में पूनिया ने कहा है, “विश्नोई से 9 बार फोन पर बात हुई है। कुछ बातचीत 20 से 30 सेकेंड की रही है। बैठकों में आते थे तो देखा है।” साथ ही यह भी कहा है कि दो महीने से लॉकडाउन चल रहा है इस वजह से उनसे कोई खास बात नहीं हुई थी।

क्या झूठ बोल रही हैं कृष्णा पूनिया?
जब भास्कर ने नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ से पूछा कि पूनिया का दावा है कि वे कभी बिश्नोई से मिली ही नहीं, तो उन्होंने कहा कहा कि पूनिया झूठ बोल रही हैं। विष्णुदत्त के पास पूनिया और उनके पति के बैठे होने की तस्वीर भी है। राठौड़ का दावा है कि पूनिया उन्हें हटाने के लिए तीन महीने से दबाव बना रहीं थीं। अपने ओएसडी अमित ढाका के जरिए मुख्यमंत्री कार्यालय में झूठी शिकायतें कर रही थीं। उन्होंने आत्महत्या के एक दिन पहले विश्नोई और उनके मित्र गोवर्धन सिंह वकील के बीच ह्वाटसऐप चैट का भी हवाला दिया है। राजस्थान पत्रिका ने राठौड़ के हवाले से कहा है कि 12 घंटे तक विश्नोई के मृत शरीर को फंदे से लटका हुआ रखा गया। शुरुआत में कहा गया कि तीन पन्ने का सुसाइड नोट है। बाद में दो ही पन्ने थे।

सवाल कई, फर्क कई
सवाल कई और भी हैं, जिनके जवाब तलाशे जाने जरूरी हैं। ऐसा इसलिए कि पूनिया कोई परंपरागत नेता नहीं हैं। वह एथलीट रही हैं। कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक जीत देश का नाम रोशन किया है। वह खुद भी कहती हैं कि जिन नेताओं की वजह से इस मामले में मेरा नाम आया है उनकी और मेरी हिस्ट्री में फर्क है।
फर्क मेनस्ट्रीम मीडिया और लिबरल गिरोह की सोच का भी है। यदि ऐसी घटना किसी बीजेपी शासित राज्य में हुई होती तो आज मोमबत्ती कम पड़ गए होते। यदि आज राजस्थान में बीजेपी की सरकार होती तो विश्नोई की आत्महत्या प्राइम टाइम में होती। सब मिलकर सिस्टम का मर्सिया पढ़ रहे होते।
क्या ईमानदार अधिकारियों की जान की कीमत यह देखकर तय की जाएगी कि सत्ता में कौन है? फिर आप पर्दे का सिंघम ही डिजर्व करते हैं। आपका सिस्टम विष्णुदत्त विश्नोई जैसों के लायक नहीं है।
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