असली भारत क्या है?

इंडिगो की उड़ान से दिल्ली से बेंगलुरु की यात्रा (लॉकडाउन से पहले) कर रहा था। यहां विमान सेवा के नाम का उल्लेख किसी विज्ञापन के लिए नहीं, बल्कि इसलिए किया कि आप जान जाएं कि विमान सेवा विशुद्ध भारतीय (प्राप्त जानकारी के अनुसार) है और इसकी अधिकांश सेवाएं भारत में ही संचालित हैं। आगे की कहानी इस संदर्भ से जुड़ती है, इसलिए यह बात यहां नमूद करना जरूरी है।

पानी मांगने पर विमान कर्मी दल की सदस्या ने कागज के गिलास में पानी पेश किया। इससे पहले अनेकों बार उसी या वैसे ही गिलास में पानी पिया होगा, लेकिन उस पर क्या लिखा है यह पढ़ने की सद्बुद्धि कभी नहीं हुई। इस बार पता नहीं कैसे उसे पढ़ने की इच्छा जगी। अंग्रेजी में लिखा था  ‘Spot the lie.’ जब ऐसा कुछ लिखा हो तो आगे भी पढ़ने की इच्छा प्रबल हो ही जाती है। गिलास को थोड़ा घुमाया तो एक और कथन दिखा

-‘Hemingway’s favourite thing to eat while writing was peanut butter sandwiches.’ मैंने गिलास को और घुमाया तो दो और कथन मिले। एक में लिखा था कि स्रींल्ल४३ का उपयोग डायनामाइट बनाने में होता है और दूसरे में लिखा था कि डेंटिस्ट इसका उपयोग नकली दांत के रूप में करते थे। यानी यह एक पहेली थी और इन तीन कथनों में से झूठ को पकड़ना था। पहले झटके में तो तीनों कथन झूठ लगे। जरा दिमाग दौड़ाया तो तीनों ही सच लगने लगे। फिर बचपन की जुगत लगाई, जिसे बाद में कई प्रतियोगी परीक्षाओं में आजमा कर सफलता भी पाई थी।

मैंने एक आंख पर उंगली रख दी। जैसा कि होना था, मेरा जवाब एकदम गलत निकला। डेंटिस्ट वाली बात झूठ थी। कुछ देर में कर्मी दल की सदस्या गिलास उठाकर ले गई, लेकिन दिमाग में उथल-पुथल तेज हो गई। लिखते समय हेमिंग्वे साहब को कौन-सा सैंडविच पसंद था, यह तो पता चल गया, पर लिखते समय गुरुदेव रवींद्र्रनाथ टैगोर, मुंशी प्रेमचंद, आर.के. नारायण, पुल देशपांडे या मिर्जा गालिब को क्या पसंद था, यह तो मालूम ही नहीं हमें। अपने प्रिय लेखकों के बारे में इतना भी मालूम न हो, यह सोचकर खेद हुआ। ज्यादा खेद इसलिए हुआ कि अकारण ही सही, हमें यह मालूम हो गया कि हेमिंग्वे साहब को क्या पसंद है।

मन अस्वस्थ हो गया। मन की ज्यादा अस्वस्थता का कारण यह था कि यात्रा में बनवारी जी की पुस्तक ‘भारत का स्वराज और महात्मा गांधी’ पढ़ रहा था। इसे ईश्वरीय संयोग ही कह सकते हैं कि मैं उसी समय पृष्ठ 131, 132 पढ़ रहा था, जिस पर गांधीजी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के दूसरे दिन यानी 5 फरवरी, 1916 के भाषण का उल्लेख था। इस भाषण में गांधीजी ने सबसे पहले तो खेद जताया था कि हिंदू विश्वविद्यालय के समारोह में भाषण अंग्रेजी में देने पर विवश किया जा रहा है। उन्होंने एक प्रोफेसर के हवाले से कहा कि अंग्रेजी सीखने और समझने में हर छात्र का छह वर्ष के बराबर समय खर्च हो जाता है। उन्होंने कहा कि यदि हमने पिछले 50 वर्षों में अपनी भाषा में शिक्षा पाई होती तो आज भारत स्वतंत्र होता। उन्होंने जोर देकर कहा कि तब हमारे पढ़े-लिखे लोग अपने ही देश में विदेशियों की तरह अजनबी न होते, बल्कि देश के हृदय को छू लेने वाली वाणी बोलते। वे गरीब से गरीब लोगों के बीच काम करते और 50 वर्षों में उनकी उपलब्धि पूरे देश की विरासत होती।

यात्रा में गिलास पर लिखे संदेश और बनवारी जी की पुस्तक में उसी अंश को एक ही समय पढ़ना कोई ईश्वरीय लीला ही थी। सुबह जब हवाईअड्डे पर फेसबुक उलट-पुलट रहा था तो एक मित्र का संदेश पढ़ा। उसने सवाल किया था कि क्या कारण है कि एक मौत होते ही कोरोना महामारी घोषित हो गई और पूरा देश रेड अलर्ट में आ गया, जबकि 200 बच्चों की मौत के बाद भी चमकी बुखार देश छोड़िए, राज्य की त्रासदी तक नहीं बन पाया। इंडिगो के गिलास का संदेश, गांधीजी का 5 फरवरी, 1916 को दिया गया भाषण और मित्र की महामारी के बारे में उठाया गया प्रश्न, सबको एक साथ जोड़कर देखता हूं तो लगता है कि हम सब भी एक पहेली सुलझाने में लगे हुए हैं- ‘Spot the lie’ और शायद अब तक उस झूठ को पकड़ नहीं पाए हैं जो हम पिछले 72 साल से अपने आप से बोल रहे हैं- ‘असली भारत क्या है?’ यदि झूठ को पहचान लेते तो इंडिगो के गिलास पर निश्चित तौर पर लिखा मिलता कि गुरुदेव रवींद्र्रनाथ टैगोर को लिखते समय क्या खाना पसंद था।  



-सच्चिदानंद जोशी की फेसबुक वॉल से