Cloud Computing - Explained in simple way

तकनीक ने न केवल हमारे जीवन को आसान बनाया है, बल्कि जीवन स्तर में सुधार के साथ देश-दुनिया के विकास को एक नया आयाम प्रदान किया है। 

आज के युग में इनसान पूरी तरह विज्ञान और तकनीक पर निर्भर है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जो तकनीक से अछूता हो। इस बार ‘तकनीक’ स्तंभ में हम कंप्यूटिंग में अक्सर सुने जाने वाले शब्द ‘क्लाउड’ की बात करेंगे कंप्यूटिंग में क्लाउड शब्द की ।

क्लाउड का मतलब गरजने या बरसने वाले बादल नहीं, बल्कि इंटरनेट है। और क्लाउड कंप्यूटिंग का मतलब है अपने डिजिटल कामकाज के लिए इंटरनेट पर रखे गए संसाधनों का इस्तेमाल।

आपने ऐसे दफ्तर या शैक्षणिक संस्थान देखे होंगे जिनमें लगे हुए कंप्यूटर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। उन्हें जोड़ने वाले सिस्टम को ‘नेटवर्क’ कहते हैं। इस नेटवर्क में कई सर्वर कंप्यूटर भी होते हैं जिनकी स्टोरेज और प्रोसेसिंग की क्षमता आम कंप्यूटरों से ज्यादा होती है। आप जानते होंगे कि नेटवर्क से जुड़े दूसरे कंप्यूटर आपस में एक-दूसरे को एक्सेस कर सकते हैं और वे नेटवर्क में रखे सर्वर कंप्यूटरों को भी एक्सेस कर सकते हैं। मसलन सर्वर के साथ कोई प्रिंटर लगा है तो आप नेटवर्क के किसी भी कंप्यूटर से प्रिंट कमांड भेज सकते हैं जो पहले उस सर्वर के पास जाएगी और वहां से प्रिंटर में चली जाएगी। भले ही आपके अपने कंप्यूटर के साथ प्रिंटर नहीं लगा है लेकिन फिर भी आप प्रिंट आउट ले पा रहे हैं। कुछ दफ्तरों में ईमेल सर्वर भी होते हैं।

आपके कंप्यूटर में आने या आपके द्वारा भेजी जाने वाली ईमेल उसी ईमेल सर्वर के जरिए आती-जाती है।

इसी तरह से कुछ एप्लीकेशन सर्वर भी होते हैं। मान लीजिए कि आपके कंप्यूटर में माइक्रोसॉफ्ट वर्ड या फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर नहीं हैं बल्कि उन्हें किसी सर्वर पर रख दिया गया है। जब आपको जरूरत होती है आप अपने कंप्यूटर पर बैठे-बैठे ही इन सॉफ्टवेयरों को नेटवर्क के जरिए एक्सेस कर लेते हैं। ऐसी ही एक स्थिति यह हो सकती है जब किसी सर्वर पर बहुत बड़े आकार की हार्ड डिस्क लगा दी जाए और दफ्तर के सभी लोगों को निर्देश दे दिया जाए कि आप सब अपनी फाइलें अपने कंप्यूटर में स्टोर नहीं करेंगे बल्कि उस सर्वर कंप्यूटर में करेंगे।

कंप्यूटर, नेटवर्क और सर्वर की यह बात आपको समझ में आ गई होगी। अब आप अपने कंप्यूटर के संसाधनों के साथ-साथ नेटवर्क पर रखे गए सर्वर के संसाधनों का लगभग उसी तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे कि वे आपके ही कंप्यूटर में रखे हों। यही नेटवर्क कंप्यूटिंग है जो बहुत फायदे का सौदा है। आपको हर कंप्यूटर के साथ प्रिंटर नहीं लगाना पड़ा, हर कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर इन्स्टॉल नहीं करने पड़े, हर कंप्यूटर में बड़ी हार्ड डिस्क नहीं लगानी पड़ी और सिर्फ सर्वर कंप्यूटरों में लगाने से ही पूरे दफ्तर का काम चल गया। धन भी बचा और सबका नियंत्रण भी एक जगह पर रहा, सुरक्षा भी अधिक रही।

अब जरा कल्पना कीजिए कि इन्हीं सर्वर कंप्यूटरों को अगर आपके नेटवर्क की बजाए इंटरनेट पर रख दिया जाए तो? चूंकि इंटरनेट भी एक बहुत बड़े आकार का नेटवर्क ही तो है और आप उससे जुड़े हुए भी हैं। आप तब भी तो इन सर्वरों के संसाधनों का इस्तेमाल कर सकेंगे? तो यही क्लाउड कंप्यूटिंग है। यानी आप ऐसे संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे होते हैं जो आपके कंप्यूटर में नहीं हैं बल्कि इंटरनेट पर मौजूद हैं। ये संसाधन कंप्यूटर, सर्वर और सॉफ्टवेयर के साथ-साथ पूरा का पूरा आधारभूत ढांचा भी हो सकते हैं। ये भौतिक रूप में आपके पास नहीं हैं बल्कि क्लाउड पर उपलब्ध एक सेवा के रूप में मुहैया कराए जा रहे हैं।

आज इंटरनेट कनेक्टिविटी इतनी अच्छी हो गई है कि बहुधा अपने ही कंप्यूटर में एक से दूसरी जगह पर फाइल को कॉपी करने में जितना समय लगता है, उतने ही समय में आप इंटरनेट से फाइल डाउनलोड कर लेते हैं। यानी आप किसी काम को स्थानीय स्तर पर करें या इंटरनेट के जरिए, आपको कोई विशेष फर्क महसूस नहीं होता। आप जिन संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे आपके पास मौजूद हैं या फिर इंटरनेट पर रखे हैं, इससे आपको कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता बशर्ते आपका काम आराम से चलता रहे। ऐसा आप पहले से ही करते आ रहे हैं।

जब आप जीमेल, आउटलुक मेल, हॉटमेल, रीडिफ मेल या याहू मेल आदि पर अपनी ईमेल चेक करते हैं और भेजते हैं तो क्या आपको कहीं भी कोई कमी महसूस होती है? बिल्कुल नहीं, हालांकि ये सभी ईमेल सेवाएं क्लाउड के जरिए काम करती हैं। आज भी बहुत सारे दफ्तरों में अपने निजी ईमेल सर्वर रखे जाते हैं और कंप्यूटर में इन्स्टाल किए गए एक खास सॉफ्टवेयर के जरिए ईमेल पाने और भेजने का काम होता है। लेकिन आप अपने ब्राउजर के जरिए भी वही काम उतनी ही आसानी से कर पा रहे हैं। मतलब यह कि काम क्लाउड के जरिए हो या अपने कंप्यूटर से, आज के जमाने में उनकी गुणवत्ता में कोई विशेष फर्क नहीं रह गया है। ऐसे और भी बहुत सारे काम आप क्लाउड के जरिए कर रहे हैं जिनका शायद आपको अहसास नहीं है। मसलन- सर्च इंजन पर जाकर कुछ सर्च करना, एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना, अपने दस्तावेज के फॉन्ट का परिवर्तन करना (जैसे कृति से मंगल) आदि।

एक मजेदार उदाहरण है ‘गूगल एड-सेन्स’ का। अगर आपकी कोई वेबसाइट, ब्लॉग या यूट्यूब चैनल आदि है तो आप गूगल एड-सेन्स कार्यक्रम में भागीदारी कर सकते हैं और उसके बाद आपके कन्टेन्ट के साथ अपने आप विज्ञापन दिखाई देने लगते हैं। यह कैसे हुआ? न तो आपने विज्ञापन बुक किए, न उनको डिजाइन किया लेकिन फिर भी आपकी वेबसाइट पर विज्ञापन आ रहे हैं और आपकी कमाई भी हो रही है। वास्तव में यह सब क्लाउड पर संचालित हो रहा है। आजकल बहुत से लोग ‘कैनवा’ जैसी वेबसाइटों पर जाकर तरह-तरह के कार्ड, लैटरहैड, लोगो, किताबों के कवर और विज्ञापन तक डिजाइन कर लेते हैं, बिना अपने कंप्यूटर में किसी ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर की मौजूदगी के। कुछ लोग आनलाइन वीडियो संपादित कर रहे हैं तो कुछ ऐनिमेशन बना रहे हैं। यह सब भी क्लाउड का ही कमाल है जिसने आनलाइन और आफलाइन के बीच दूरी को अप्रासंगिक बना दिया है।

क्लाउड पर मौजूद संसाधनों को तीन बड़े हिस्सों में बांट कर देखा जा सकता है-

S.A.S (सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस), 

P.A.S (प्लेटफॉर्म एज ए सर्विस) और

I.A.S (इन्फ्रास्ट्रक्चर एज ए सर्विस)। 

सॉफ्टवेयर एज ए सर्विस का अर्थ यह हुआ कि आप माइक्रोसॉफ्ट वर्ड, फोटोशॉप, किसी वीडियो एडीटिंग सॉफ्टवेयर या ऐसे ही किसी दूसरे सॉफ्टवेयर को अपने कंप्यूटर में इन्स्टॉल किए बिना क्लाउड के जरिए इस्तेमाल कर लें। .बहुत से लोग गूगल डॉक्युमेंट्स का इस्तेमाल करते हैं। यह क्लाउड सेवाओं की पहली श्रेणी हुई। 

अगर आप सॉफ्टवेयर विकसित करते हैं लेकिन उनके विकास में प्रयुक्त होने वाले प्लेटफॉर्म या कम्पोनेन्ट्स (हिस्सों) को क्लाउड के जरिए एक्सेस करते हैं तो वह प्लेटफॉर्म एज ए सर्विस कहलाएगा। 

इसी तरह से, अगर आप किसी व्यापक प्लेटफॉर्म (जिसमें सैंकड़ों किस्म के सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और सेवाएं मौजूद हैं) का इस्तेमाल करेंगे तो वह इन्फ्रास्ट्रक्चर एज ए सर्विस कहलाएगा, जैसे कि विंडोज एज्योर, अमेजॉन वेब सर्विसेज और गूगल कंप्यूट क्लाउड।