कालयवन का सेनापति अपने राजा की मृत्यु का समाचार सुनकर भाग गया, बची खुची सेना को जरांसन्ध ने अपनी सेना में मिला लिया । कृष्ण राजधानी बदल चुके थे।
कुमार
की
जय
हो
...!
ऋषि
हारीत
आपसे
भेंट
करना
चाहते
हैं..!
ऋषिवर
का
नाम
सुनते
ही
बप्पा
रावल
की
आँखों
में
चमक
दौड़
पड़ी
।
बप्पा
रावल
स्वयं
ही
दौड़
कर
ऋषिवर
का
स्वागत
करने
पहुँचे
,
अहो
भाग्य
ऋषिवर
जो
आप
यहाँ
पधारे
..!
राजन
मैं
यहाँ
अपना
स्वागत
करवाने
नही
आया
हूँ
बल्कि
आपको
यह
स्मरण
कराने
आया
हूँ
क्या आप राजा मानमौरी पर विजय प्राप्त करने के उपरांत जो मुझे वचन दिए थे क्या वह भूल गए हैं...!!!
मेवाड़
से
चितौड़
की
यात्रा
ने
कहीं
आपमें
परिवर्तन
तो
नही
ला
दिया..!
देवर्षि
नारद
मथुरा
से
द्वारिका
आने
का
उद्देश्य
मात्र
राज्य
को
चहुँओर
से
सुरक्षित
करना
था,
मैं
उचित
समय
की
प्रतीक्षा
कर
रहा
हूँ
मुनिवर...!
मैंने
लक्ष्यों
के
विस्मरण
नही
किया
है..
कृष्ण
गंभीर
होकर
कहते
हैं,
परंतु
ऐसा
प्रतीत
होता
है
कि
रावल
आप
भूल
चुके
हैं
, किस
प्रकार
से
राजा
दाहिर
की
दोनो
बेटियों
को
मलेच्छो
ने
तब
तक
घोड़े
से
घसीटा
जब
तक
कि
दोनों
की
मृत्यु
नही
हो
गयी...
सिंध
के
नागरिकों
की
आत्मा
कराह
रही
है
और
प्रतीक्षा
कर
रही
है
अपने
तारण
हार
की..
सिंध
आखिर
कब
तक
म्लेच्छों
के
नियंत्रण
में
रहेगा
..!
देवर्षि
नारद
तनिक
आवेश
में
बोले:
द्वारिकाधीश..!!
कदाचित आप भूल रहे हैं कि गंधार में हस्तिनापुर का नियंत्रण अब निर्बल हो चुका है और उधर शकुनि का पुत्र मलेच्छो को आर्य भूमि में प्रवेश कराने का मार्ग खोलकर बैठा है ..!
जरांसन्ध,
शिशुपाल,
शल्य
की
तिकड़ी
मगध
तक
कालयवन
के
सेनापति
को
सेना
सहित
अबाध
संचरण
करने
का
मार्ग
दे
रही
है...!
मत
भूलो
रावल
इस
राज्य
की
प्रजा
तुम्हारी
निष्ठा
औऱ
प्रजा
वत्सलता
के
कारण
तुम्हे
बप्पा
पुकारती
है
, भगवान
मानती
है
..!
यह
जान
लो
यदि
सिंध
सुरक्षित
नही
है
तो
मालवा,
गुजरात,मेवाड़, भी सुरक्षित नही रह सकता..!
ब्राह्मणवाद पर अरबों का नियंत्रण समूचे आर्यवर्त के विनाश का कारण बनेगा....!
कृष्ण
विचार
कर
ही
रहे
थे
कि
तभी
बलदाऊ
आ
गए
और
उन्होंने
नारद
जी
की
बात
का
अनुमोदन
किया
..!
कृष्ण
बोले
उचित
है
प्रातःकाल
ही
हम
प्रस्थान
करेंगे
परंतु
दाऊ
आप
राज्य
की
सुरक्षा
का
भार
देखेंगे.....!!
नारायणी
सेना
म्लेच्छों
के
रक्त
सरोवर
में
स्नान
करने
के
लिए
प्रस्थान
करती
है
..!
बप्पा
रावल
जय
एकलिंग
का
जय
जय
घोष
करते
हैं।
अपनी
सेना
के
साथ
जब
बप्पा
रावल
सिंध
की
ओर
प्रस्थान
करते
है
तो
मार्ग
में
आने
वाली
यवन
छावनियों
का
भी
विनाश
करते
जा
रहे
थे।
दृश्य
कुछ
ऐसा
था
जैसे
स्वयं
महाकाल
अपने
गणों
के
साथ
विध्वंश
करने
जा
रहे
हो
.....!
म्लेच्छ
सेना
सेनापति
कई
अक्षोणी
सेना
लेकर
चढ़
आया
था
मगर
द्वारिका
के
यादव
वीर
म्लेच्छों
का
ऐसे
नाश
कर
रहे
थे
जैसे
मानो
स्वयं
महादेव
तांडव
कर
रहे
थे..!
दशों
दिशाओं
में
जय
एकलिंग
का
जय
घोष
गूंज
रहा
था
भीलों
और
राजपूत
वीरों
की
सेना
तिसपर
बप्पा
रावल
का
चातुर्य
स्वयं
भगवान
कार्तिकेय
का
रूप
धर
कर
म्लेच्छों
का
नाश
कर
रहा
था..
!
बप्पा
रावल
जब
म्लेच्छों
को
सिंधु
के
पार
खदेड़
रहे
थे
तब
हारीत
ऋषि
सिंधु
तट
पर
खड़े
होकर
सिंधु
नदी
को
ताक
रहे
थे।
उनके
कानों
में
सिसकियों
और
रुदन
की
ध्वनि
गूंजने
लगी
हारीत
ऋषि
ने
जब
स्वयं
को
उन
सिसकियों
से
जोड़ा
तब
उन्हें
लगा
कि
सिंधु
की
मासूम
जनता
, राजा
दाहिर
की
बेटियाँ
जैसे
उनसे
कह
रही
हों,
हे
ऋषिवर
..!
वो महाकाल के समान जो योद्धा शत्रुओं पर टूट रहा है उसे ही माध्यम बनाकर अखंड भारत की नींव रखिये अन्यथा एक समय आएगा जब जौहर ही हम स्त्रियों का भाग्य बन जायेगा ..!
ये
नर
पिसाच
किसी
को
नही
छोड़ेंगे..!
हमारी
पीड़ा
को
समझिए
ऋषिवर
और
इस
पीड़ा
से
आगे
की
पीढ़ियों
की
रक्षा
करिये..!
सिंकंदर
की
सेना
सिंध
से
वापस
जा
रही
थी,
चाणक्य सिंधु नदी के जल को उठाकर शपथ लेता है
मैं भारत के सोए हुए राष्ट्र देवों को चैतन्य कर दूंगा.!
मैं
चणि
पुत्र
चाणक्य
प्रतिज्ञा
करता
हूँ
कि
मैं
अखंड
भारत
के
निर्माण
में
आने
वाली
हर
बाधा
का
सर्वनाश
कर
दूंगा...!
चन्द्रगुप्त
अपने
गुरु
के
लक्ष्य
को
अपना
लक्ष्य
बना
लेता
है
और
वचन
देता
है
वह
अपने
सारे
व्यक्तिगत
सुखों
को
अखंड
भारत
के
यज्ञ
में
स्वाहा
कर
देगा
...!
व्यथित
युद्धिष्ठर
स्वयं
को
युद्ध
का
दोषी
मानकर
प्रायश्चित
के
अथाह
सागर
में
डूबा
हुआ
था
कि
तभी
केशव
वहाँ
पधारते
हैं,,,
इतने
उदास
क्यों
हो
बड़े
भैया
..!
केशव
अब
मुझे
राज्य
की
लालसा
नही
है
इस
महाविनाश
के
बाद
मैं
सन्यास
लेना
चाहता
हूँ..!
कृष्ण
कठोर
शब्दों
में
बोले
: राज्य
कोई
उपभोग
की
वस्तु
नही
है
जिसकी
लालसा
की
जाय
राज्य
तो
दायित्व
का
विषय
है
...
विध्वंस
के
बाद
जब
निर्माण
का
समय
आया
तो
आप
अपने
कर्तव्य
से
भाग
रहें
हैं
जबकि
इस
क्षण
आपका
कर्तव्य
यह
है
कि..
खंड
खंड
में
बंटे
हुए
भारत
को
जोड़ना
ताकि
बाहरी
शक्तियां
आर्यवर्त
को
खंडित
न
कर
सके
,
इस
समय
खंडित
भारत
को
जोड़कर
नागरिकों
को
रक्षा
कवच
प्रदान
करने
का
कार्य
करिये
धर्म
राज..!
अर्जुन
का
गांडीव
उठा,
भीम
की
गदा
उठी
,,
चल
पड़ा
अश्व
अखंड
भारत
की
पताका
लिए
...!
काल अलग अलग थे पर सिंधु के तट पर खड़े हारीत ऋषि, चाणक्य ,चन्द्रगुप्त, बप्पा रावल की आंखों में सिर्फ अखंड भारत का दृश्य दृश्यमान हो रहा था..!!
ओ भारत के सोए हुए राष्ट्रदेव चैतन्य हो जाओ..!
तुम्हे राजा दाहिर की बेटियों के शव पुकार रहें हैं..!
रानी पद्मिनी का जौहर तुम्हारा आह्वाहन कर रहा है..!
राणा
सांगा
की
कटी
भुजाएं
तुम्हारी
वीरता
को
जगा
रही
हैं..!
1946,
1947 में
तुम्हारे
बंधुओं
और
बहनों
बेटियों
की
चीखें
तुम्हें
धिक्कार
रही
हैं..!
जाग
जाओ
....!
हे
राष्ट्र
देव
जाग
जाओ
...!
पूर्व
के
राष्ट्र
देवों
का
लक्ष्य
अखंड
भारत
था,
हे
चिर
निंद्रा
में
सो
रहे
राष्ट्र
देवों
जागों
और
लक्ष्य
के
प्रति
सचेत
हो
जाओ..!
सोया
हुआ
मनुष्य
मरे
हुए
के
समान
होता
है
अतः
अपने
शवगृह
से
उठो...!
सुनो
प्रकृति
में
गूँज
रही
उन
ध्वनियों
को
जो
तुमसे
अखंड
भारत
मांग
रही
है..!
ईश्वर
ने
अखंड
भारत
की
नियति
रच
दी
अतः
हे
भारत
कर्म
करने
से
पीछे
मत
हटो..!