राम अयोध्या में अपने जन्मस्थान पर विराजमान हो गए।
कितनी पीढ़ियां यह सुखद पल देखने का सपना संजोए संसार से विदा हो गईं, पर वर्तमान पीढ़ी को यह सौभाग्य मिला। संतों के निरंतर संघर्ष, राष्ट्रीय शक्ति का सहयोग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प की त्रिवेणी से यह परम् सौभाग्य का सपना सकार हो सका।
स्वतंत्र भारत के इस सबसे बड़े सामाजिक आंदोलन की सुखांत परिणति का साक्षी होना विह्वल कर देने वाला क्षण था.
क्या यह भावना का उफान भर था? नहीं! यह उस संघर्ष को लांघकर निकले सामाजिक उद्वेलन के आंसू थे।
एक ऐसी बेचैनी और छटपटाहट, जो बीती पांच सदी से इस समाज के सीने में जमी बैठी थी, एकाएक छंट गई। आंसुओं का सागर बह निकला।
22 जनवरी 2024 विश्व इतिहास में एक अमर स्मृति बन गई है। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का लाइव प्रसारण देखने का विश्व कीर्तिमान बना।
‘जय रामजी की’ या ‘राम-राम’ के संबोधन से जहां लोगों की सुबह होती है और जीवन का सूरज डूबने पर भी जिस समाज की यात्रा ‘राम नाम सत्य है’ उच्चारते हुए आगे बढ़ जाती है वह धरती विशेष है, यहां के लोग विशेष हैं। राम जो सबको दिशा-भरोसा देते हैं।
निषाद के दाता राम। अहिल्या-शबरी के त्राता राम। सुग्रीव-भरत के सखा-भ्राता… सब राम ही तो हैं।