माई
लॉर्ड, हम न वकील
हैं, न अंग्रेजी विशेषज्ञ
और न हमारे पास
डिगरियां हैं। इसलिए
हमसे शानदार भाषणों
की आशा न की
जाए। हमारी प्रार्थना
है कि हमारे बयान
की भाषा संबंधी
त्रुटियों पर ध्यान
न देते हुए,
उसके वास्तवकि अर्थ
को समझने का
प्रयत्न किया जाए।
दूसरे तमाम मुद्दों
को अपने वकीलों
पर छोड़ते हुए
मैं स्वयं एक
मुद्दे पर अपने विचार
प्रकट करूंगा। यह
मुद्दा इस मुकदमे में
बहुत महत्वपूर्ण है।
मुद्दा यह है कि
हमारी नीयत क्या
थी और हम किस
हद तक अपराधी हैं।
विचारणीय यह है कि असेंबली में हमने जो दो बम फेंके, उनसे किसी व्यक्ति को शारीरिक या आर्थिक हानि नहीं हुई। इस दृष्टिकोण से हमें जो सजा दी गई है, वह कठोरतम ही नहीं, बदला लेने की भावना से भी दी गई है।
यदि दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाए, तो जब तक अभियुक्त की मनोभावना का पता न लगाया जाए, उसके असली उद्देश्य का पता ही नहीं चल सकता। यदि उद्देश्य को पूरी तरह भुला दिया जाए, तो किसी के साथ न्याय नहीं हो सकता, क्योंकि उद्देश्य को नजरों में न रखने पर संसार के बड़े-बड़े सेनापति भी साधारण हत्यारे नजर आएंगे। सरकारी कर वसूल करने वाले अधिकारी चोर, जालसाज दिखाई देंगे और न्यायाधीशों पर भी कत्ल करने का अभियोग लगेगा।
इस तरह सामाजिक व्यवस्था और सभ्यता खून-खराबा, चोरी और जालसाजी बनकर रह जाएगी। यदि उद्देश्य की उपेक्षा की जाए, तो किसी हुकूमत को क्या अधिकार है कि समाज के व्यक्तियों से न्याय करने को कहे? यदि उद्देश्य की उपेक्षा की जाए, तो हर धर्म प्रचारक झूठ का प्रचारक दिखाई देगा और हरेक पैगंबर पर अभियोग लगेगा कि उसने करोड़ों भोले और अनजान लोगों को गुमराह किया ।
यदि उद्देश्य को
भुला दिया जाए,
तो हजरत ईसा
मसीह गड़बड़ी फैलाने
वाले, शांति भंग
करने वाले और
विद्रोह का प्रचार
करने वाले दिखाई
देंगे और कानून के
शब्दों में वह खतरनाक
व्यक्तित्व माने जाएंगे...
अगर ऐसा हो, तो
मानना पड़ेगा कि
इनसानियत की कुरबानियां,
शहीदों के प्रयत्न, सब
बेकार रहे और आज
भी हम उसी स्थान
पर खड़े हैं,
जहां आज से बीस
शताब्दियों पहले थे।
कानून की दृष्टि से
उद्देश्य का प्रश्न
खासा महत्व रखता
है।
माई लॉर्ड, इस दशा में मुझे यह कहने की आज्ञा दी जाए कि जो हुकूमत इन कमीनी हरकतों में आश्रय खोजती है, जो हुकूमत व्यक्ति के कुदरती अधिकार छीनती है, उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं। अगर यह कायम है, तो आरजी तौर पर और हजारों बेगुनाहों का खून इसकी गर्दन पर है। यदि कानून उद्देश्य नहीं देखता, तो न्याय नहीं हो सकता और न ही स्थायी शांति स्थापित हो सकती है।
आटे में संखिया
मिलाना जुर्म नहीं,
यदि उसका उद्देश्य
चूहों को मारना हो।
लेकिन यदि इससे किसी
आदमी को मार दिया
जाए, तो कत्ल का
अपराध बन जाता है।
लिहाजा, ऐसे कानूनों को,
जो युक्ति (दलील)
पर आधारित नहीं
और न्याय के
सिद्धांत के विरुद्ध
है, उन्हें समाप्त
कर देना चाहिए।
ऐसे ही न्याय विरोधी
कानूनों के कारण
बड़े-बड़े श्रेष्ठ
बौद्धिक लोगों ने
बगावत के कार्य किए
हैं।
हमारे
मुकदमे के तथ्य बिल्कुल
सादा हैं। 8 अप्रैल,
1929 को हमने सेंट्रल
असेंबली में दो
बम फेंके। उनके
धमाके से चंद लोगों
को मामूली खरोंचें
आईं। चेंबर में
हंगामा हुआ, सैकड़ों दर्शक
और सदस्य बाहर
निकल गए। कुछ देर
बाद खामोशी छा
गई। मैं और साथी
बीके दत्त खामोशी
के साथ दर्शक गैलरी
में बैठे रहे
और हमने स्वयं
अपने को प्रस्तुत किया
कि हमें गिरफ्तार
कर लिया जाए।
हमें गिरफ्तार कर
लिया गया। अभियोग
लगाए गए और हत्या
करने के प्रयत्न के
अपराध में हमें सजा
दी गई। लेकिन बमों
से 4-5 आदमियों को
मामूली चोटें आईं
और एक बेंच को
मामूली नुकसान पहुंचा।
जिन्होंने यह अपराध
किया, उन्होंने बिना
किसी किस्म के
हस्तक्षेप के अपने
आपको गिरफ्तारी के
लिए पेश कर दिया।
सेशन जज ने स्वीकार
किया कि यदि हम
भागना चाहते, तो
भागने में सफल हो
सकते थे। हमने अपना
अपराध स्वीकार किया
और अपनी स्थिति
स्पष्ट करने के
लिए बयान दिया।
हमें सजा का भय
नहीं है। लेकिन हम
यह नहीं चाहते
कि हमें गलत
समझा जाए। हमारे
बयान से कुछ पैराग्राफ
काट दिए गए हैं,
यह वास्तविकता की
दृष्टि से हानिकारक है।
समग्र
रूप में हमारे वक्तव्य
के अध्ययन से
साफ होता है
कि हमारे दृष्टिकोण
से हमारा देश
एक नाजुक दौर
से गुजर रहा
है। इस दशा में
काफी ऊंची आवाज
में चेतावनी देने
की जरूरत थी
और हमने अपने
विचारानुसार चेतावनी दी
है। संभव है
कि हम गलती पर
हों, हमारा सोचने
का ढंग जज महोदय
के सोचने के
ढंग से भिन्न हो,
लेकिन इसका यह
अर्थ नहीं कि
हमें अपने विचार
प्रकट करने की
स्वीकृति न दी
जाए और गलत बातें
हमारे साथ जोडी जाएं।
‘इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ के संबंध में हमने जो व्याख्या अपने बयान में दी, उसे उड़ा दिया गया है: हालांकि यह हमारे उद्देश्य का खास भाग है। इंकलाब जिंदाबाद से हमारा वह उद्देश्य नहीं था, जो आमतौर पर गलत अर्थ में समझा जाता है।
पिस्तौल और बम
इंकलाब नहीं लाते,
बल्कि इंकलाब की
तलवार विचारों की
सान पर तेज होती
है और यही चीज
थी, जिसे हम
प्रकट करना चाहते
थे। हमारे इंकलाब
का अर्थ पूंजीवादी
युद्धों की मुसीबतों
का अंत करना है।
मुख्य उद्देश्य और
उसे प्राप्त करने
की प्रक्रिया समझे
बिना किसी के
संबंध में निर्णय देना
उचित नहीं। गलत
बातें हमारे साथ
जोड्ना साफ अन्याय है।
इसकी चेतावनी देना
बहुत आवश्यक था।
बेचैनी रोज-रोज बढ़
रही है। यदि उचित
इलाज न किया गया,
तो रोग खतरनाक रूप
ले लेगा। कोई
भी मानवीय शक्ति
इसकी रोकथाम न
कर सकेगी। अब
हमने इस तूफान का
रुख बदलने के
लिए यह कार्रवाई की।
हम इतिहास के
गंभीर अध्येता हैं।
हमारा विश्वास है
कि यदि सत्ताधारी शक्तियां
ठीक समय पर सही
कार्रवाई करतीं, तो
फ्रांस और रूस की
खूनी क्रांतियां न
बरस पड़तीं। दुनिया
की कई बड़ी-बड़ी
हुकूमतें विचारों के
तूफान को रोकते हुए
खून-खराबे के
वातावरण में डूब
गइंर्।
सत्ताधारी लोग परिस्थितियों के प्रवाह को बदल सकते हैं। हम पहले चेतावनी देना चाहते थे। यदि हम कुछ व्यक्तियों की हत्या करने के इच्छुक होते, तो हम अपने मुख्य उद्देश्य में विफल हो जाते। माई लॉर्ड, इस नीयत और उद्देश्य को दृष्टि में रखते हुए हमने कार्रवाई की और इस कार्रवाई के परिणाम हमारे बयान का समर्थन करते हैं।
एक और नुक्ता
स्पष्ट करना आवश्यक
है। यदि हमें बमों
की ताकत के
संबंध में कतई ज्ञान
न होता, तो
हम पं. मोती लाल
नेहरू, श्री केलकर,
श्री जयकर और जिन्ना जैसे
सम्माननीय राष्ट्रीय व्यक्तियों
की उपस्थिति में
क्यों बम फेंकते? हम
नेताओं के जीवन किस
तरह खतरे में
डाल सकते थे?
हम पागल तो
नहीं हैं? और अगर
पागल होते, तो
जेल में बंद करने
के बजाय हमें
पागलखाने में बंद
किया जाता। बमों
के संबंध में
हमें निश्चित जानकारी
थी। उसी कारण हमने
ऐसा साहस किया।
जिन बेंचों पर
लोग बैठे थे,
उन पर बम फेंकना
कहीं आसान काम
था, खाली जगह
पर बमों को
फेंकना निहायत मुश्किल
था। अगर बम फेंकने
वाले सही दिमागों के
न होते या
वे परेशान होते,
तो बम खाली जगह
के बजाय बेंचों
पर गिरते। तो
मैं कहूंगा कि
खाली जगह के चुनाव
के लिए जो हिम्मत
हमने दिखाई, उसके
लिए हमें इनाम
मिलना चाहिए। इन
हालात में, माई लार्ड,
हम सोचते हैं
कि हमें ठीक
तरह समझा नहीं
गया। आपकी सेवा
में हम सजाओं में
कमी कराने नहीं
आए, बल्कि अपनी
स्थिति स्पष्ट करने
आए हैं। हम
चाहते हैं कि न
तो हमसे अनुचित
व्यवहार किया जाए,
न ही हमारे संबंध
में अनुचित राय
दी जाए। सजा
का सवाल हमारे
लिए गौण है।