महाभारत

जब आप तैरना भी जानते हो लेकिन नदी में आप डूब रहे हो..

जब आपको बचाने की कोशिश बड़े से बड़े अनुभवी तैराक भी करें लेकिन तब भी आपको बचा पाएं .....

तब समझ लो आपका प्रारब्ध बली हो गया है...

प्रारब्ध का कहीं कहीं से संबंध जरूर होता है!

अर्थात भूत काल का कोई आपका या आपके पूर्वजों का कोई कर्म है जो भंवर बन कर आपको डूबो रहा है

पिता और पूर्वजों के कर्मों का भुगतान संतानों को करना ही पड़ता है...

पांडवों कौरवों का विनाश उसी दिन रच गया था जिस दिन जबरजस्ती धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से कराया गया था !

कुरुवंश का विनाश उसी दिन रच गया था जिस दिन भीम ने दुर्योधन   को विधवा पुत्र कहा ....!

गांधारी मांगलिक थी उनका एक मांगलिक विवाह हुआ था..

कुरुवंश के सम्पूर्ण नाश की रूप रेखा उसी दिन रच गयी थी जिस दिन दुर्योधन ने शकुनि के परिवार के 100 लोगों को कारागार में बंद कर दिया और रोज केवल एक मुट्ठी चावल खाने को देते थे जिसे शकुनि के पूरे परिवार ने अपने हिस्से का चावल सिर्फ शकुनि को देकर बिना भोजन के अपने प्राणों को त्याग दिया ताकि शकुनि जीवित रह सके  और उनका बदला ले सके....

भीष्म ने इन पापों पर पर्दा डाला , धृतराष्ट्र चुप रहे

किसी को अपने पूर्व कर्मो का भान नही रहा  वही शकुनि अपने परिवार के विनाश का बदला लेने के लिए कुरुवंश के विनाश की नींव रखना शुरू कर देता है .....

पूरे महाभारत में सब शकुनि के इशारे पर ही नाचे हैं

शकुनि का अभीष्ट सिद्ध होने में बाधा तब आयी जब अर्जुन ने गांडीव रख दिया लेकिन कृष्ण ने गीता ज्ञान देकर अर्जुन को फिर से शकुनि के अभीष्ट सिद्धि के लिए खड़ा कर दिया.....

कृष्ण ने शांति प्रस्ताव के माध्यम से शकुनि के अभीष्ट को सिद्ध होने से रोकने का सबको विकल्प दिया पर किसी का भी ध्यान उधर गया ही नही....

सभी बुद्धिजीवी समस्या को पांडवों कौरवों तक ही देख रहे थे मगर यह  महाभारत पांडवो कौरवों की लड़ाई थी ही नही...

शकुनि जानता था कि पांडवों का अहित करना बहुत मुश्किल है क्योंकि साथ में कृष्ण हैं और शकुनि यह भी जानता था अगर पांडवों को बड़े घाव ना दिए गए तो पांडव दुर्योधन को क्षमा कर देंगे.....

शकुनि पांडवो कौरवों के बीच  छोटे छोटे युद्धों  को नही होने देना चाहता था क्योंकि वह जान रहा था इससे युद्ध पिपासा शांत हो सकती है अगर युद्ध पिपासा शांत हुई तो सर्वनाश होना मुश्किल है .....

इसीलिए उसने कुटिल चालें चलकर कौरवों और पांडवों के बीच मतभेदों और ईर्ष्या की ऐसी दीवार खड़ी कर दी कि चाह कर भी पांडव कौरव पीछे नही हट सकते थे..... 

द्रौपदी वस्त्रहरण आखिरी कील आखिरी चाल थी सर्वनाश की भूमिका रचने की.......

यदि कृष्ण अर्जुन के माध्यम से धर्म स्थापना करवा रहे थे तो शकुनि महाभारत के हर पात्र के माध्यम से अपने अभीष्ट की सिद्धि करवा रहा था..….

शकुनि ने सभी शूरवीरों को कृष्ण पांडव नाम के मजबूत पहाड़ से टकराने को विवश कर दिया जिससे सभी का चूर चूर होना निश्चित था...

इसीलिए आवश्यक होता है कि अपने और अपने पूर्वजों के कर्मों पर स्वतंत्र चिंतन करना चाहिए उनके पाप को पाप और पुण्य को पुण्य समझना चाहिए उनपर पर्दा नही डालना चाहिए जिससे आँखें खुली रहें और शकुनियों को पहचान सकें.....

समस्या के मूल जड़ को पहचाने तभी निवारण संभव है ......

यदि दुर्योधन अपनी आँखें खुली रखता अपने पूर्व के कर्मो पर ध्यान देता तो उसे समझ में जाता कि शकुनि उसका हितैषी है या काल का माध्यम...

एक समृद्ध शक्तिशाली दैवीय वंश को मात्र एक मानवीय बुद्धि ने तहस नहस कर दिया....

नारायण भी किसी के कर्मों के बीच नही आते इसीलिए स्वयं नारायण भी केवल धर्म का बीज बचा पाए बाकी वृक्ष तो धराधायी हो ही गया......

इसका अर्थ यह है आप कितने भी धार्मिक संस्कारों को करने वाले क्यों हों ..!

पूर्वजों का और आपके कर्मों का फल आपको मिलकर ही रहेगा स्वयं ईश्वर भी आपके कर्मों का भोग  नही टाल सकते......

ईश्वर अपनी पूजा से अधिक आपके कर्मों का हिसाब रखता है ...!